उत्तर प्रदेश

The secret of Tantra practitioners is hidden in the Vindhya hills | विन्ध्य की पहाड़ियों में छिपा है तंत्र साधकों का रहस्य: सिद्धपीठ में तंत्रिकों की साधना, महाकाली तारा मन्दिर और विंध्य पर्वत साधकों की तपोस्थली – Mirzapur News

विन्ध्याचल सिद्धपीठ, जो अपनी पहाड़ियों के लिए प्रसिद्ध है, नवरात्र में तांत्रिक साधकों का प्रमुख स्थान बन जाता है। यहां भक्त साधना करते हैं और सिद्धियों की प्राप्ति के लिए विभिन्न तंत्र मंत्रों का जाप करते हैं। नवरात्र की अष्टमी तिथि तंत्र साधकों के

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विन्ध्य पर्वत के काली खोह, तारा मंदिर और भैरो कुंड पर साधक साधना में लीन रहते हैं। इस क्षेत्र में शक्ति शिव के साथ तीनों स्वरूप—महालक्ष्मी, महाकाली और महासरस्वती— विराजमान हैं। इनकी उपासना के साथ-साथ भैरों और भैरवी का भी महत्व है। माता विंध्यवासिनी, जो ब्रह्मांड के केंद्र बिंदु पर स्थित हैं, का एक नाम बिन्दुवासिनी भी है।

महाकाली ने रक्तासुर का वध इसी पर्वत पर किया था, और यहां की मिट्टी आज भी लाल है। कहा जाता है कि देवी ने अपने मुख को खोलकर दानव का रक्तपान किया था। भक्तों को इस स्वरूप का दर्शन काली खोह में मिलता है। देश के पांच प्रमुख तारा पीठों में से एक, विन्ध्याचल का तारा मंदिर राम गया घाट पर स्थित है।

वेगवती गंगा नदी के तट पर स्थित इस श्मशान घाट पर बेल के वृक्षों से आच्छादित शिव और शक्ति के स्थल में साधक सिद्धि की देवी माँ तारा की आराधना के लिए दूर-दूर से आते हैं। साधक, सात्विक, राजसिक और तामसिक तीनों रूपों में पूजन कर सिद्धियों की प्राप्ति करते हैं।

तंत्र विद्या में साधना के पांच गुण बताए गए हैं। मंदिर के पास श्मशान, वेगवती नदी, गौशाला, बेल वृक्ष और शिव का सानिध्य, ये सभी विशेषताएं विन्ध्य क्षेत्र में देखने को मिलती हैं।

विन्ध्य पर्वत पर विराजमान माता काली का दिव्य रूप भक्तों को निर्भयता प्रदान करता है। इस स्वरूप का दर्शन दुर्लभ माना जाता है। काजल के समान काली और रक्तासुर के रक्त का पान करने वाली माता काली का दिव्य स्वरूप भक्तों को अभय प्रदान करता है। इस प्रकार, विन्ध्याचल सिद्धपीठ नवरात्र के दौरान तंत्र साधकों का प्रमुख केंद्र बन जाता है, जहां साधक अपनी साधना के माध्यम से अद्भुत शक्तियों की प्राप्ति के लिए प्रयासरत रहते हैं।

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