उत्तर प्रदेश

Pura Mahadev Mandir of Baghpat becomes the best tourist village | बागपत का पुरा महादेव मंदिर बना सर्वश्रेष्ठ पर्यटन गांव: भगवान परशुराम ने स्थापित किया था शिवलिंग, यहीं से कांवड़ यात्रा शुरुआत – Baghpat News

बागपत जिले का ऐतिहासिक पुरा महादेव गांव अब एक नई पहचान मिली है। सरकार ने इस गांव को सर्वश्रेष्ठ पर्यटन गांव घोषित किया है, और इसके साथ ही यहां के लोगों में विकास और रोजगार की उम्मीदें जगी हैं। पुरा महादेव न सिर्फ अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए जाना जा

.

गांव और मंदिर का इतिहास पुरा महादेव गांव का इतिहास प्राचीन काल से जुड़ा हुआ है। मान्यता है कि भगवान परशुराम ने हिंडन नदी के किनारे स्थित इस मंदिर की स्थापना की थी। यह वह स्थान है, जहां से कांवड़ यात्रा की शुरुआत मानी जाती है। किवदंती है कि विश्व की पहली कांवड़ यहीं पर शिवलिंग पर चढ़ाई गई थी, और तभी से यह परंपरा शुरू हुई। समय के साथ, इस मंदिर की मान्यता और प्रसिद्धि दिन-प्रतिदिन बढ़ती गई। सावन के महीने में हजारों भक्त यहां जल चढ़ाने आते हैं, और नागपंचमी पर यहां एक विशिष्ट घटना होती है- कहते हैं कि हर साल एक नाग भी यहां शिवलिंग की पूजा करता है।

यहां के स्थानीय निवासी मनोज तिवारी, जो गांव के प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ता हैं, बताते हैं, “इस गांव का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व इतना अधिक है कि देश के कोने-कोने से लोग यहां आते हैं। सावन के महीने में तो यहां भक्तों की भीड़ देखते ही बनती है। अब जब इस गांव को सर्वश्रेष्ठ पर्यटन गांव घोषित किया गया है, हमें उम्मीद है कि यहां रोजगार के अवसर बढ़ेंगे और गांव का विकास होगा।”

पर्यटन गांव घोषित होने के बाद क्या बदलने की उम्मीद है?

पुरा महादेव गांव को पर्यटन के रूप में विकसित किए जाने की योजना ने यहां के स्थानीय निवासियों में नई उम्मीदें जगा दी हैं। फिलहाल यहां बुनियादी सुविधाओं की कमी महसूस की जा रही है। शिव मंदिर तक पहुंचने का रास्ता ग्रामीण और असुविधाजनक है। मुख्य सड़क से मंदिर तक की दूरी करीब तीन किलोमीटर है, जिसे या तो अपने वाहन से तय करना पड़ता है, या फिर ऑटो और ई-रिक्शा का सहारा लेना पड़ता है।

गांव में अब उम्मीद की जा रही है कि बेहतर यातायात सुविधाएं उपलब्ध होंगी और सड़कें चौड़ी और दुरुस्त की जाएंगी। साथ ही, मंदिर के आसपास आधुनिक सुविधाओं से लैस दुकानें और भोजनालय भी खुलने की संभावना है, जो यहां के लोगों के लिए रोजगार का नया जरिया बन सकता है।

स्थानीय दुकानदार रामलाल वर्मा का कहना है, “सावन और फागुन के मेले में यहां मेला लगता हहै। लेकिन पूरे साल दुकानें चलाने की कोई व्यवस्था नहीं है। अब जब यह गांव पर्यटन के लिए विकसित किया जाएगा, तो उम्मीद है कि हमारी दुकानें भी नियमित रूप से चल सकेंगी।”

आधुनिकता और विकास के बीच मंदिर भले ही इस गांव को पर्यटन के रूप में विकसित किया जा रहा है, लेकिन यहां के निवासी मंदिर की प्राचीनता को संजोने में लगे हैं। मंदिर का पौराणिक महत्व बनाए रखने के लिए यहां के लोग और स्थानीय प्रशासन खास ध्यान दे रहे हैं। गांव के बुजुर्ग रघुवीर सिंह कहते हैं, “यह मंदिर हमारे पूर्वजों की धरोहर है। यहां सिर्फ रोजगार या विकास की बात नहीं है, बल्कि यह स्थान हमारी आस्था का केंद्र है। हम चाहते हैं कि विकास के साथ मंदिर की पुरानी परंपराएं और मान्यताएं भी सुरक्षित रहें।”

रोजगार के अवसर और भविष्य की योजनाएं

गांव के युवाओं को इस विकास से सबसे अधिक फायदा मिलने की उम्मीद है। मंदिर और गांव के विकास के बाद यहां पर्यटकों की संख्या बढ़ने की संभावना है, जिससे होटल, गाइड, ट्रांसपोर्ट और शॉपिंग से संबंधित कामों में रोजगार के अवसर उत्पन्न हो सकते हैं। सरकार ने इस क्षेत्र में आधारभूत ढांचे को सुधारने और पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए योजनाओं पर काम शुरू कर दिया है।

स्थानीय निवासी संदीप कुमार, जो इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर चुके हैं, बताते हैं, “अगर यहां सही तरीके से विकास किया जाए तो हम युवाओं को गांव छोड़कर बाहर नहीं जाना पड़ेगा। हम यहां ही अपनी रोजी-रोटी कमा सकते हैं।”

अब पढ़िए इस धरोहर से जुड़ी एक किवदंती

पुरा महादेव का मंदिर का इतिहास भगवान परशुराम और उनके परिवार से जुड़ा है। कहा जाता है कि प्राचीन काल में राजा सहस्त्रबाहु शिकार खेलते हुए एक आश्रम पहुंचे, जहां ऋषि की अनुपस्थिति में उनकी पत्नी रेणुका ने कामधेनु गाय की मदद से राजा का सत्कार किया। राजा इस अद्भुत गाय को अपने साथ ले जाना चाहता था, लेकिन वह इसमें सफल नहीं हो सका। गुस्से में आकर राजा, ऋषि की पत्नी रेणुका को अपने साथ जबरदस्ती हस्तिनापुर ले गया और महल में बंद कर दिया।

रेणुका की छोटी बहन ने उसे किसी तरह राजा के महल से छुड़ाया, जिसके बाद रेणुका वापस आश्रम आ गई। जब ऋषि ने यह सब सुना, तो उन्होंने गुस्से में रेणुका को आश्रम छोड़ने का आदेश दे दिया, क्योंकि वह एक रात दूसरे पुरुष के महल में रही थीं। रेणुका बार बार अपने पवित्र होने की दुहाई देती रहीं, लेकिन ऋषि अपनी बात पर अड़े रहे। अंत में उन्होंने अपने पुत्रों से कहा कि वे अपनी मां का सिर धड़ से अलग कर दें। जिसपर परशुराम, जो चौथे पुत्र थे, पिता की आज्ञा का पालन करते हुए अपनी मां का सिर काट दिया।

परशुराम को अपनी इस कार्रवाई पर गहरा पश्चाताप हुआ, और उन्होंने पास के जंगल में जाकर घोर तपस्या शुरू कर दी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए और वरदान मांगने को कहा। परशुराम ने अपनी मां को पुनर्जीवित करने की प्रार्थना की, जिसे भगवान शिव ने स्वीकार किया। शिव ने उन्हें एक परशु (फरसा) भी दिया और कहा कि इसका प्रयोग करने पर वे युद्ध में हमेशा विजयी होंगे।

परशुराम ने अपने फरसे से राजा सहस्त्रबाहु और उनकी पूरी सेना का वध कर दिया। परशुराम को क्षत्रियों के अत्याचारों से गहरी पीड़ा थी, इसलिए उन्होंने इक्कीस बार पृथ्वी को क्षत्रियों से मुक्त कर दिया। जिस स्थान पर परशुराम ने तपस्या की थी और शिवलिंग स्थापित किया था, वहां एक मंदिर बनवाया गया, जिसे आज परशुरामेश्वर मंदिर के नाम से जाना जाता है।

समय के साथ यह मंदिर खंडहर में बदल गया। फिर, एक दिन लण्डौरा की रानी जब इस स्थान से गुजरीं, तो उनके हाथी ने वहां रुककर आगे बढ़ने से मना कर दिया। रानी ने वहां खुदाई का आदेश दिया, जिसमें शिवलिंग प्रकट हुआ। तब रानी ने वहां एक नए मंदिर का निर्माण करवाया, जो आज भी श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र बना हुआ है।

इस मंदिर में एक और खास बात यह है कि जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी कृष्ण बोध आश्रम जी महाराज ने भी यहां तपस्या की थी। उन्हीं की प्रेरणा से पुरामहादेव महादेव समिति का गठन किया गया, जो आज इस मंदिर का संचालन करती है। यह मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि इसके साथ जुड़ी पौराणिक कथाएं इसे और भी खास बनाती हैं।

Source link

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button