UP Aayog Nigam Board Lateral Entry Politics; BJP RSS | OBC SC ST Aayog | ओबीसी-एससी आयोग में 40% नियुक्तियां संघ से जुड़े लोगों की: अध्यक्ष तक का पद दिया; नाराजगी दूर करने की कोशिश ताकि चुनावों में मिले फायदा – Uttar Pradesh News

भाजपा सरकार संघ से जुड़े लोगों को आयोग, निगम और बोर्ड में जगह देकर आरएसएस की नाराजगी दूर करने में जुटी है। यूपी के अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग और अनुसूचित जाति एवं जनजाति आयोग में संघ के लोगों को महत्वपूर्ण पद दिए गए हैं। दोनों आयोगों में 40% पद संघ की पृष्ठ
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लोकसभा चुनाव के पहले से ऐसा माना जा रहा है कि यूपी में आरएसएस के लोग भाजपा से नाराज हैं। यह भी कहा गया कि चुनाव में संघ और अनुषांगिक संगठनों के कार्यकर्ताओं ने भाजपा के लिए काम नहीं किया। चुनाव में भाजपा की हार के पीछे इसे भी बड़ी वजह माना गया। भाजपा ने इससे सबक लेते हुए निगम, आयोग और बोर्ड में अब संघ को पहले से ज्यादा तवज्जो देना शुरू किया है। वहीं, आरएसएस की नाराजगी इसलिए भी दूर की जा रही है, क्योंकि हाल में 10 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने हैं।
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी और महामंत्री संगठन धर्मपाल सिंह ने एससी और ओबीसी आयोग के गठन से पहले संघ के क्षेत्रीय पदाधकारियों से बातचीत की। उनकी ओर से सुझाए गए अधिकांश नामों को आयोग में उपाध्यक्ष और सदस्य जैसे पदों पर नियुक्त किया गया। जानकारों की माने तो आगे भी अन्य आयोग, बोर्ड और निगम के गठन में भी ऐसा देखने को मिल सकता है।
एससी आयोग के अध्यक्ष बैद्यनाथ रावत संघ के स्वयंसेवक रहे हैं।
जानिए दोनों आयोगों में किन बड़े पदों पर किसे नियुक्ति मिली एससी आयोग: अनुसूचित जाति आयोग में भाजपा ने अपने मूल कैडर को ज्यादा मौका दिया। आयोग के अध्यक्ष बैद्यनाथ रावत 1985 में संघ के प्रशिक्षित स्वयंसेवक हैं। आयोग के उपाध्यक्ष बेचन राम भाजपा के पुराने दलित कार्यकर्ता हैं। वहीं सदस्य बनाए गए मऊ निवासी विनय राम, भदोही निवासी मिठाई लाल और लखनऊ निवासी अजय कोरी भी संघ के स्वयंसेवक रहे हैं। एससी आयोग में 20 पदों में से 8 सदस्य संघ से जुड़े हैं।
ओबीसी आयोग: ओबीसी आयोग में उपाध्यक्ष मिर्जापुर निवासी सोहनलाल श्रीमाली आरएसएस में काशी के सह प्रांतकार्यवाह रहे हैं। आयोग के सदस्य विनोद सिंह पटेल गोंडा में संघ के विभाग प्रचारक। विनोद यादव मऊ में जिला प्रचारक। कुलदीप विश्वकर्मा झांसी में विभाग प्रचारक। अशोक सिंह अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के पूर्णकालिक जबकि, चौधरी लक्ष्मण सिंह भी संघ के पूर्णकालिक हैं। ओबीसी आयोग में एक उपाध्यक्ष और 23 सदस्यों में से 10 सदस्य संघ पृष्ठभूमि से हैं।

ओबीसी आयोग में उपाध्यक्ष सोहनलाल श्रीमाली आरएसएस में काशी के सह प्रांतकार्यवाह रहे हैं। उनके केशव प्रसाद मौर्य से अच्छे संबंध हैं।
पहले क्या थी स्थिति: एससी आयोग और ओबीसी आयोग का गठन करीब चार से 5 साल इंतजार के बाद हुआ है। दोनों आयोग में पहले भाजपा के लोग ज्यादा थे। 2017 में भाजपा की सरकार बनी थी। इसलिए कैडर के साथ दूसरे दलों से आए लोगों और सहयोगी दलों के कार्यकर्ताओं को भी मौका दिया गया। संघ का कोई पूर्व पदाधिकारी पिछले आयोग में सदस्य, अध्यक्ष या उपाध्यक्ष नहीं था।
लोकसभा चुनाव के बाद बदली परिस्थिति जानकारों का मानना है कि यूपी में सत्ता व संगठन में आरएसएस के लोगों को शुरुआत से ही महत्व दिया जाता रहा है। लेकिन इतना महत्व कभी नहीं दिया गया, जितना इस बार सूची में दिखा। वहीं, बीते कुछ सालों में विधानसभा चुनाव 2022 और लोकसभा चुनाव 2024 में प्रत्याशी चयन में संघ की राय को यूपी में ज्यादा महत्व नहीं दिया गया। ऐसा कहा जाता है कि लोकसभा चुनाव में संघ और अनुषांगिक संगठनों के कार्यकर्ताओं ने अपेक्षित सक्रियता नहीं दिखाई। यूपी में भाजपा की हार में यह भी एक बड़ा कारण माना जाता है।
बीते दिनों संघ के सह सरकार्यवाह अरुण कुमार ने मुख्यमंत्री आवास पर बैठक की। बैठक में सीएम योगी आदित्यनाथ के साथ दोनों डिप्टी सीएम, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी और महामंत्री संगठन धर्मपाल सिंह भी मौजूद रहे। इसी बैठक में आयोग, निगम और बोर्ड के गठन पर मंथन हुआ। तय हुआ कि निगम, आयोग और बोर्ड के गठन में भाजपा के मूल कैडर के साथ संघ के स्वयंसेवकों और अनुषांगिक संगठनों के कार्यकर्ताओं को मौका दिया जाएगा।
भाजपा और प्रदेश सरकार ने दोनों आयोगों में मूल कैडर और संघ के लोगों को महत्व देकर एक संदेश दिया है कि पार्टी को बाहरी लोगों से ज्यादा अपने मूल कैडर की चिंता है। साथ ही संघ के स्वयंसेवकों का भी सरकार में पूरा हक है। यह भी संदेश देने की कोशिश है कि संघ की भाजपा या सरकार से कोई नाराजगी नहीं है।

वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक सिद्धार्थ कलहंस कहते हैं- लोकसभा चुनाव में यूपी में भाजपा की हार में आरएसएस की अनदेखी को प्रमुख कारण माना गया। ऐसा माना गया कि चुनाव में दलबदलुओं को अधिक महत्व मिला। भाजपा ने अब निगम, आयोग और बोर्ड के गठन में दूसरे दलों से आए लोगों की जगह अपने कैडर के साथ आरएसएस को महत्व दिया है।

वेतन या सुविधा से ज्यादा सम्मान
ओबीसी आयोग और एससी आयोग के अध्यक्ष का वेतन 40 हजार रुपए महीना होता है। आयोग के अध्यक्ष को टाइप 5 के आवास की सुविधा के साथ वाहन, सुरक्षा कर्मी, अनुसेवक की सुविधा भी मिलती है। आयोग के उपाध्यक्ष का वेतन 35 हजार रुपये और सदस्यों का मानदेय 30,000 रुपये प्रतिमाह है। इन्हें भी आवास की सुविधा दी जाती है। जानकार मानते हैं कि वेतन या सुविधाओं से अधिक अपनी जाति या समाज में सम्मान और नई पहचान मिलती है। यूपी में 2018 में फागू सिंह चौहान को ओबीसी आयोग का अध्यक्ष बनाया गया था। इस पद पर रहते हुए ही उन्हें बिहार जैसे महत्वपूर्ण राज्य का राज्यपाल बनाया गया।

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उत्तर प्रदेश भाजपा ने 4 साल बाद राज्य महिला आयोग का गठन किया। आगरा की बबीता चौहान को महिला आयोग का अध्यक्ष बनाया गया। मुलायम सिंह यादव की छोटी बहू अपर्णा यादव को उपाध्यक्ष बनाया गया। गोरखपुर की चारू चौधरी को भी उपाध्यक्ष की जिम्मेदारी मिली है। पूरी खबर पढ़ें…