The soft targets of wolves are children and elderly women Search Operation | भेड़ियों के सॉफ्ट टारगेट सिर्फ बच्चे और बुजुर्ग महिलाएं: गन्ने के खेतों के पास वाले घरों पर सबसे ज्यादा हमले; वैज्ञानिक बोले- भेड़िए भूखे हैं – Uttar Pradesh News

बहराइच के हरदी इलाके का सिकंदरपुर गांव। 5 अगस्त की रात करीब 11 बजे। गांव के अधिकतर लोग जानवरों से फसल बचाने के लिए खेतों में रखवाली कर रहे थे। अचानक गन्ने के खेत के पड़ोस ही बने एक झोपड़ीनुमा घर में बुजुर्ग महिला की चीख सुनकर सभी उस ओर दौड़ पड़े। पहुंचने
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आंखों से ठीक से न देख पाने वाली 65 साल की माया देवी खून से लथपथ पड़ी हैं। उनके गले पर किसी जंगली जानवर के दांतों के गहरे निशान हैं। आनन-फानन में उनको अस्पताल ले जाया गया।
भेड़ियों को पकड़ने के लिए गांव के लोग भी प्रशासन की टीम के साथ लगे हैं।
ये कोई एक मामला नहीं है। दैनिक भास्कर की टीम तीसरे दिन इस बात की पड़ताल करने निकली कि भेड़िए किन जगहों और किन लोगों को सॉफ्ट टारगेट मान रहे हैं?
हमारे सामने दो सवाल सबसे अहम थे। पहला- क्या इंसानों के अलावा छोटे जानवरों को भी अपना टारगेट कर रहे हैं? दूसरा- गांव के किस हिस्से को वो हमले के लिए सबसे मुफीद मान रहे हैं?
इसकी तस्दीक करने हम सबसे पहले हरदी इलाके के सिकंदरपुर, मक्कापुरवा गांव पहुंचे। आइए पड़ताल के सभी फैक्ट्स को सिलसिलेवार ढंग से बताते हैं।
19 बच्चों और 9 महिलाओं पर कर चुका हमला

हमारी पड़ताल में एक बात सामने आई कि भेड़िया दो तरह के लोगों पर हमला कर रहा। पहला- 10 साल से कम उम्र के बच्चों पर। इसमें भी टारगेट 3-4 साल के बच्चे ज्यादा हैं। दूसरा- बुजुर्ग महिलाओं पर, जिनका वजन कम है। हमले से सबसे प्रभावित महसी तहसील के गांव हैं।
महसी CHC में जिन 34 लोगों का इलाज हुआ, उसमें 19 बच्चे और 9 महिलाएं हैं। हमले का शिकार 5 महिलाओं की उम्र 50 साल से ज्यादा है। ऐसे ही एक मामले की जानकारी मिलने पर हम सिकंदरपुर गांव पहुंचे। यहां हमें 65 साल की माया देवी मिलीं। करीब 5 साल से उन्हें दोनों आंखों से नहीं दिखाई देता। उन पर 5 अगस्त को भेड़िए ने हमला किया था।

उन दो लोगों की आपबीती, जो भेड़िए के हमले में घायल हुए।
लोग नहीं आते तो भेड़िया मुझे खा जाता…
माया कहती हैं- मैं उस दिन घर के बाहर झोपड़ी में अपनी 5 साल की पोती के साथ सो रही थी। रात में भेड़िया आया और पीछे से मेरा गला पकड़ लिया। वो मुझे खींचने लगा, तो मेरी चीख निकल गई। घर के सारे लोग खेतों में रखवाली के लिए गए थे। पड़ोस में जो थे, वो जाग रहे थे। वो लोग भागकर आए, तो भेड़िया भाग गया। अगर वो लोग नहीं आते, तो भेड़िया मुझे खा जाता।

ये माया देवी हैं। भेड़िए के हमले में जान बच गई। कहती हैं, उस रात मौत को करीब से महसूस किया।
माया के अलावा कोटिया इलाके में 60 साल की कमला और 55 साल की सुमन पर भी भेड़िए ने अटैक किया। दोनों का भी वजन कम और कद छोटा है। हालांकि ऐसा नहीं कि पुरुषों पर हमले नहीं हो रहे। लेकिन, इसकी संख्या बहुत कम है।
मानसी बोली- भेड़िया आया और मेरे चेहरे को पकड़ लिया

मानसी पर भेड़िए ने हमला किया। शोर करने पर आदमखोर भाग निकला।
माया से मिलने के बाद हम गरेठी इलाके पहुंचे। यहां 7 साल की मानसी पर भेड़िए ने हमला किया। हमले में मानसी घायल हुई। ये दो कमरों का घर है, लेकिन भेड़िए के डर के चलते अब सभी लोग एक ही कमरे में सोते हैं।
15 अगस्त की रात मानसी अपनी मां रिंकी और भाई के साथ कमरे में मच्छरदानी के अंदर सो रही थी। मानसी कहती है- हम कमरे में सबसे अंदर की तरफ सो रहे थे। भेड़िया आया और मेरे चेहरे को पकड़ लिया। मैंने शोर मचाया, तो सब लोग उठ गए और भेड़िया भाग गया। मेरे कान और गाल से खून बहने लगा। घरवाले तुरंत हॉस्पिटल लेकर गए। अब ठीक हूं।
मानसी की मां रिंकी कहती हैं- जब से भेड़िए बच्चों को उठाने लगे, तब से हम इसी कमरे में सोते हैं। उस दिन भी दो खाट लगाई थीं। तब हमारे घर में दरवाजा नहीं था, इसलिए हमने बच्चों को पीछे लिटाया और खुद आगे सोई। ताकि जो घटना हो, वह हमारे ही साथ हो। खाट ऐसी बिछाई थी कि बहुत थोड़ी-सी जगह बची। लेकिन, भेड़िए ने किनारे से जाकर बच्ची पर हमला कर दिया। यहां इलाज तो हो गया, अब कह रहे कि वैक्सीन लगवाने लखनऊ जाओ।
15 गांव सबसे ज्यादा सेंसिटिव, यहां 50 बार अटैक
महसी तहसील के हरदी, शिशैया चूड़ामणि, सिकंदरपुर, मक्का पुरवा, कोटिया, नकाही, बारा बिगहा, कुलैला, हिन्दू पुरवा, गरेठी, महसी टपरा समेत करीब 15 गांव सबसे ज्यादा सेंसिटिव हैं। इन गांव में भेड़ियों ने करीब 50 बार अटैक किया। 90% अटैक बच्चों पर हुए। हम ऐसे ही गांव नकाही में 8 साल के पारस से मिले। पारस को 2 अगस्त की रात भेड़िया उठाने आया, लेकिन ले नहीं जा पाया। इसी दिन आसपास के करीब 4 गांव में भेड़ियों ने 6 लोगों पर हमला किया।

पारस पर भेड़िए ने हमला किया। शोर मचाने पर घर के पास गन्ने के खेत में छिप गया।
पारस अपने साथ हुई घटना के बारे में बताता है- घर के आंगन में तीन खाट लगी थीं। मेरी वाली खाट अंदर की तरफ सबसे किनारे थी। रात के करीब 12 बजे भेड़िया आया और उसने मेरी गर्दन पकड़ ली। मैं जाग गया, मैंने जोर से खटिया पकड़ ली। शोर मचाया तो बगल में सो रही मम्मी और बाकी लोग उठ गए। इसके बाद वह आंगन से छलांग मारकर बाहर गन्ने के खेत में भाग गया।
भेड़िए पकड़ने में दो सबसे बड़ी बाधा?
1- गन्ने के खेत के पास वाले घरों में ज्यादा हमले, अटैक कर छिप जाते हैं
भेड़ियों के हमले में एक चीज जो कॉमन नजर आई है, वह यह कि ज्यादातर घटनाएं गांव के किनारे वाले घरों में हुईं। सभी घरों से कुछ ही दूरी पर गन्ने के खेत थे। कहा जा सकता है, भेड़िए ने गन्ने के खेत में छिपकर शिकार पहचाना। फिर घटना को अंजाम देकर गन्ने के खेत में ही छिप गया। वन विभाग के ड्रोन गन्ने के खेत के ऊपर उड़ाए तो गए, लेकिन भेड़ियों को ढूंढ नहीं पाए। यानी गन्ने के खेत भेड़ियों के छिपने की मुफीद जगह हैं, जहां से उन्हें पकड़ना आसान नहीं।

गन्ने के खेत में भेड़िए घुस जाते हैं तो उन्हें तलाश करना मुश्किल होता है।
2- बत्ती गुल…अंधेरा होते ही भेड़िए करते हैं हमला
भेड़ियों के आतंक के चलते बहराइच जिले में बिजली सप्लाई को लेकर आदेश है कि रात में कटौती न हो। लेकिन, हकीकत इससे एकदम अलग है। ज्यादातर गांव में रात में बिजली की सप्लाई सीमित है। भेड़िए के हमले से घायल हुई मानसी की मां रिंकी बताती हैं- बिजली का कोई भरोसा नहीं। कई बार रात में दो बजे बिजली आती है। तब तक अंधेरे का फायदा उठाकर भेड़िया हमला कर चुका होता है।
हम यहां कई गांव घूमे। बिजली की सप्लाई ठीक नहीं मिली। इसके अलावा कई गांव ऐसे मिले जहां स्ट्रीट लाइट की व्यवस्था अभी भी नहीं है। शाम होते ही इन गांवों में अंधेरा पसर जाता है।
आम जिंदगी पर असर…खौफ इतना कि बच्चे पर हमले के बाद गांव छोड़ दिया
भेड़ियों के हमले से लोगों दिनचर्या पर असर पड़ा है। लोग रात-रात भर सो नहीं पा रहे। स्कूलों में बच्चों की संख्या घट रही है। एक परिवार ऐसा भी मिला, जिसने बच्चे पर हमले के बाद गांव ही छोड़ दिया। नकाही में हमें एक महिला फूलन मिलीं।
फूलन ने बताया- हमारे देवर रोजी-रोटी के सिलसिले में पंजाब में रहते हैं। देवरानी अपने दो बच्चों के साथ गांव में रहती थी। तकरीबन 15 दिन पहले अचानक 3 साल के बच्चे पर भेड़िए ने हमला किया। देवरानी जग रही थी, इसलिए शोर मचाया। गांव के लोग दौड़े, तो भेड़िया भाग निकला। घायल बच्चे को इलाज के लिए अस्पताल पहुंचाया गया। इलाज से वह ठीक तो हुआ, लेकिन परिवार में इतनी दहशत हो गई थी कि देवरानी अपने बच्चों को लेकर पति के पास पंजाब चली गई।

इसी तरह गांव की एक अन्य महिला के साथ भी हुआ। उसके पति की मौत हो चुकी है। वह झोपड़ीनुमा घर में अकेली रहती थी। उसके घर के पास भी एक रात भेड़िया आया। वह इतनी डर गई कि घर छोड़कर अपने मायके नानपारा चली गई। गांव में रिंकू नाम के एक शख्स पर भेड़िए ने हमला किया था, वह भी डर के मारे गांव छोड़कर कहीं बाहर चला गया। हालांकि कुछ लोग उसे इलाज के लिए जाने की बात बता रहे हैं।
स्कूलों में बच्चों की संख्या घटी
हम इसके बाद बग्गर इलाके में पहुंचे। यहां सरकारी स्कूल में कुल 200 बच्चे हैं। पहले 150 से 160 तक बच्चे आ जाते थे, लेकिन अब 100 बच्चे ही स्कूल आ रहे हैं। पहले ये बच्चे अकेले आ जाते थे, लेकिन अब इनके घरवाले इन्हें स्कूल तक छोड़ने और फिर छुट्टी होने पर लेने आते हैं। स्कूल गन्ने के खेत से एकदम सटा हुआ है, इसलिए यहां टीचर्स बच्चों को कहीं भी अकेले बाहर नहीं निकलने देते।

ड्रोन में चार भेड़ियों का झुंड कैद हुआ था। दहशत के कारण परिजन बच्चों को खुद स्कूल छोड़ने और लेने आ रहे हैं।
स्कूल के ही शिक्षा मित्र ऑफ कैमरा बताते हैं- भेड़िए के हमलों के चलते यहां डर बहुत ज्यादा है। पास के ही गांव में भेड़िया कई बार हमला कर चुका है। इसलिए बच्चों को लेकर हम अतिरिक्त सावधानी बरत रहे हैं। अब किसी भी बच्चे को अकेला नहीं छोड़ते।
हैरान वाली बात…किसी गांव में बकरी के बच्चे गायब नहीं
भेड़ियों के मुख्य भोजन में आमतौर पर बकरी के बच्चे, खरगोश या फिर चूहे हैं। पिछले तीन दिन से हम 30 से ज्यादा गांव गए। कहीं भी बकरी या फिर उसके बच्चे के गायब होने की सूचना नहीं मिली। यह अपने आप में गंभीर विषय है। हमने इसे लेकर वन्य जीव संरक्षण के लिए काम करने वाले जंग बहादुर सिंह उर्फ जंग हिंदुस्तानी से बात की।
जंग हिंदुस्तानी कहते हैं- भेड़िए झुंड में रहते हैं। इनके बुजुर्ग सदस्य भेड़िए के बच्चों की सुरक्षा करते हैं। बड़े भेड़िए शिकार करके लाते हैं, तो बुजुर्ग सदस्यों को भोजन मिलता है। भेड़िए बकरी के बच्चों को शिकार न बनाकर इंसान के बच्चों पर अटैक कर रहे हैं। इससे यही लगता है कि उन्हें नुकसान पहुंचाया गया है।

जंगल का खूंखार भेड़िया गांव में कैसे हमलावर हो गया?
भेड़िए के स्वभाव के बारे में जानने के लिए दैनिक भास्कर की टीम वाराणसी में BHU के जंतु विज्ञान विभाग पहुंची। वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (देहरादून) में भेड़िए पर रिसर्च कर चुके स्कॉलर शैलेश देसाई से बात की। उन्होंने भेड़ियों के हमले को लेकर हमारे सवालों के जवाब दिए। पढ़िए इंटरव्यू…
सवाल : क्या भेड़िए खूंखार होते हैं? क्या वो जंगल के बाहर आते रहते हैं?
जवाब : भेड़िए कभी खूंखार नहीं होते। बहुत शर्मीले नेचर के होते हैं। वे कभी किसी व्यक्ति को नुकसान नहीं पहुंचाते। उनका स्थान बदला है, वे जंगल से मैदानी क्षेत्र में आए हैं। इसलिए इस तरह से खूंखार हो गए हैं और अपने भोजन की तलाश में हमला कर रहे हैं।

सवाल : फिर भेड़िए के हमलावर होने के पीछे क्या कारण हैं?
जवाब : इसके 2 रीजन हो सकते हैं। पहला, उन्हें रैबीज बीमारी हो गई होगी। दूसरा, जब उन्हें पर्याप्त मात्रा में भोजन नहीं मिलता। तभी वे इस तरह की हरकतें करते हैं।
सवाल : बहराइच में भेड़ियों को पकड़ना इतना मुश्किल क्यों हो रहा?
जवाब : भेड़िया का क्षेत्र बड़ा होता है। लगातार मूवमेंट करते रहते हैं। कहीं भी ज्यादा नहीं रुकते। आमतौर पर वन विभाग के कर्मचारी भेड़ियों को पकड़ने के लिए जगह-जगह पर पिंजरे लगाते हैं। इनमें कुछ मीट वगैरह रखा जाता है। लेकिन, भेड़िया कहीं भी एक जगह पर रहकर अपना भोजन नहीं करता। यही बड़ा कारण है कि वन विभाग को इन भेड़ियों को पकड़ने में काफी मुश्किल हो रही।
सवाल : जंगल में भेड़ियों का मूवमेंट कैसा रहता है?
जवाब : भेड़िए हमेशा 4-5 के ग्रुप में रहते हैं। जंगल में रहते हुए अक्सर वे हिरण या छोटे जानवरों पर हमला करते हैं।
सवाल : भेड़िए की एक दिन की खुराक कितनी होती है? कितनी दूर से शिकार की गंध पहचान लेता है?
जवाब : इसका कोई सही आकलन नहीं है, लेकिन उन्हें अपनी भूख मिटाने के लिए एक बार में 2-3 किलो मीट चाहिए। अपनी भूख मिटाने के लिए एक-एक दिन में 20 से 25 किलोमीटर तक चल लेते हैं। भेड़िए 20 किलोमीटर दूर से ही अपने शिकार की गंध पहचान लेते हैं।

स्कॉलर शैलेश देसाई ने भेड़िए की प्रवृत्ति पर रिसर्च की है। वह BHU के जंतु विज्ञान विभाग में रिसर्च करते हैं।
सवाल : बहराइच में घूम रहे भेड़िए बच्चों को ज्यादा शिकार क्यों बना रहे हैं?
जवाब : भेड़िए अपनी भूख मिटाने के लिए इंसान के बच्चे या जानवर के शिकार में अंतर नहीं करते। खास बात यह भी है कि भेड़िया अपने शिकार को शिकार करने वाली जगह पर नहीं खाता। इसके लिए वह शिकार को लेकर 1-2 किलोमीटर दूर तक चला जाता है, जहां वह अपने शिकार को इत्मिनान से खाता है। ऐसे में वह इंसान के बच्चों को ज्यादातर निशाना बनाते हैं, जो प्रतिरोध नहीं कर पाते हैं। रात में खुले में सो रहे बच्चों को मुंह में दबाकर भाग रहे हैं।
सवाल : भेड़िए सबसे ज्यादा कहां पाए जाते हैं। उनकी भारत में संख्या कितनी है?
जवाब : भारत में जो पिछला रिसर्च हुआ, उसके अनुसार भेड़ियों की संख्या करीब 3 हजार है। सबसे ज्यादा बेसलैंड में रहते हैं। यूपी, बिहार, गुजरात, कर्नाटक के कुछ एरिया हैं, जहां भेड़िए ज्यादा पाए जाते हैं।
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बहराइच से करीब 35 किमी दूर महसी तहसील का बारह बिगहा गांव। यहां भेड़िए की दहशत से खौफजदा लोग हाथ में लाठी-डंडे लेकर खड़े होकर बातें कर रहे हैं। तभी अचानक गांव में हलचल बढ़ती है। एक के बाद एक तकरीबन 18 लग्जरी गाड़ियां गांव में पहुंचती हैं। इस काफिले में कुछ पुलिस और वन विभाग की भी गाड़ियां शामिल हैं। पढ़ें पूरी खबर