Siberian crane Varanasi Uttar Pradesh Ganga river | क्लाइमेट चेंज की वजह से कम पहुंचे साइबेरियन पक्षी: घाटों की बढ़ी खूबसूरती; लुप्तप्राय इंडियन स्कीमर के 150 जोड़े आए – Varanasi News

वाराणसी में पूरी दुनिया से लोग घूमने आते रहते हैं। ठंड में काशी के घाटों पर गर्म चाय और सुबह-सुबह ठंडे पानी में डुबकी लगाते हैं। लेकिन, क्या आप जानते हैं काशी में सिर्फ इंसान ही नहीं, एक खास किस्म के पक्षी भी आते हैं? ये पक्षी विदेशी मेहमान हैं जो हज
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ये पक्षी रूस के साइबेरिया इलाके से आते हैं। इन्हें साइबेरियन पक्षी कहते हैं। ये ऐसी पक्षी हैं जो हवा में उड़ते हैं और पानी में भी तैरते हैं। सफेद रंग के इन पक्षियों की चोंच और पैर नारंगी रंग के होते हैं।
साइबेरिया बहुत ही ठंडी जगह है जहां नवंबर से लेकर मार्च तक तापमान जीरो से बहुत -50, -60 डिग्री नीचे चला जाता है। इस तापमान में इन पक्षियों का जिंदा रह पाना बहुत मुश्किल हो जाता है। इसीलिए ये पक्षी हजारों किलोमीटर की दूरी तय करके भारत आते हैं।
आइए देखते हैं पहले तस्वीर
वाराणसी आने वाले पर्यटक पक्षियों के साथ तस्वीर लेते दिखे।

इस पक्षियों का चोंच और पैर नारंगी होता है।

इस वर्ष घाट पर पक्षियों को नमकीन खिलाने पर लगा है रोक।
साइबेरिया पक्षी क्लाइमेट चेंज की वजह से हुए कम बीएचयू की प्रोफेसर चंदना हलधर ने कहा – इस बार साइबेरियन पक्षी काफी देर और कम आ रहे हैं। इसकी वजह पूरे देश में क्लाइमेट चेंज है। तमाम ऐसी जगह है, जहां पर समय से पहले बर्फबारी हो रही है जो इनके रास्तों को रुकावट पैदा कर रही है।
उन्होंने कहा कि साइबेरिया से चलते वक्त जब इनके रास्तों में बाढ़ और तूफान जैसे हालात मिल रहे हैं तो उनके लिए समस्या हो जा रही है। उन्होंने बताया कि इसकी वजह से कुछ पक्षियां मर जाते हैं जो आ रहे हैं उसकी संख्या कम है।

इस पक्षियों के तस्वीर को लेने के लिए तमाम फोटोग्राफर काशी आते हैं।
अफगानिस्तान और पाकिस्तान होते हुए आते हैं भारत बीएचयू के वैज्ञानिक ने बताया कि साइबेरियन पक्षियों की सैकड़ों ऐसी प्रजातियां हैं, जो हर साल अपना घर छोड़कर दुनियाभर में पनाह पाती हैं। भारत आने के लिए ये पक्षी 4000 किलोमीटर से भी ज्यादा लम्बा सफर उड़कर पूरा करते हैं। ये पक्षी अफगानिस्तान और पाकिस्तान को पार करते हुए भारत आते हैं।
इतना लम्बा सफ़र ये 10-20 के समूह में नहीं बल्कि हजारों के ग्रुप में उड़ते हुए पूरा करते हैं। भारत में भी इनका एक लैंडिंग स्थान है। ये पक्षी सबसे पहले महाराष्ट्र के बारामती पहुंचते हैं।
यानी अगर सफर में कोई पक्षी बाकियों से अलग भी हो गया तो उसे पता है कि उसके साथी उसे बारामती में स्थित ‘बिग बर्ड सेंचुअरी’ में मिलेंगे। यहां इकट्ठा होकर ये पक्षी भारत के कोने-कोने में जाते हैं और पूरी ठंड यहीं बिताते हैं।
तय रास्ते से सफर करते हैं प्रवासी पक्षी, ब्रेड-नमकीन न खिलाएं बीएचयू की प्रोफेसर चंदना हलधर ने कहा – सात समुंदर पार से परिंदे जिस रास्ते से आते हैं, उसी को जाने के लिए चुनते हैं। ठहरने का स्थान पहले ही तय होता है, जहां वो हर साल रुकते हैं। गंगा स्वच्छ हुई हैं। लिहाजा, प्रवासी पक्षियों की संख्या लगातार बढ़ रही है। सैलानी कई बार पक्षियों को ब्रेड या नमकीन खिलाते हैं, जो उनके लिए हानिकारक होते हैं।

साइबेरियन पक्षी का नजारा।
इन बातों का रखना होगा ख्याल बीएचयू की प्रोफेसर चंदना हलधर ने कहा – दरअसल, प्रवासी पक्षियों का मुख्य भोजन मछली होती है। मगर, मैदानी इलाकों में वे मनुष्य के नजदीक आती है तो उन्हें ब्रेड या नमकीन दिया जाता है।
उसका सेवन करने से उन्हें डायरिया होता है और उससे वे ज्यादा दिन जीवित नहीं रह पाते हैं। पक्षियों पर शोध करने वाली हलधर ने बताया कि उनके साथ अठखेलिया करनी चाहिए, मगर उन्हें कुछ खिलाने से बचना चाहिए।
वाराणसी में करते हैं चातुर्मास वाराणसी में चार महीने तक रहने के दौरान मेहमान परिंदे गंगा की लहरों और घाटों पर आकर्षण का केंद्र रहते हैं। पर्यटक दाना भी डालते हैं। पक्षी प्रजनन कर गंगा पार रेत पर अपने अंडे को सुरक्षित रखते हैं। मार्च में अपने बच्चों के साथ स्वदेश वापस जाते हैं।

नाविकों ने बताया कि ये पक्षी आव-आव की आवाज लगाने पर पास आ जाते हैं।
पक्षियों को नुकसान पहुंचाने वाले जाएंगे जेल प्रभागीय वन अधिकारी प्रवीण खरे ने बताया पक्षियों को इन नुकसान से बचाने के लिए विभाग ने टीम का गठन किया है। वन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि अगर कोई भी इन पक्षियों को नुकसान पहुंचाएगा तो वन विभाग उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई करेगा।
उन्हें जेल भी जाना पड़ सकता है। प्रवासी पक्षियों की संख्या अभी और बढ़ेगी। दिसंबर के अंतिम सप्ताह से जनवरी की शुरुआत में पक्षियों की संख्या काफी बढ़ जाती है।