How many villages are not uploaded on the computerized management system portal | कंप्यूटरीकृत प्रबंधन सिस्टम पोर्टल पर कितने गांव अपलोड नहीं: हाईकोर्ट ने जताई नाराजगी, कमिश्नर/सचिव उप्र राजस्व परिषद लखनऊ को निर्देश, मांगा जवाब – Prayagraj (Allahabad) News

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कमिश्नर/सचिव उप्र राजस्व परिषद लखनऊ को प्रदेश के ऐसे सभी गांवों की संख्या का डाटा पेश करने का निर्देश दिया है जिनको अभी तक राजस्व कोर्ट कंप्यूटरीकृत प्रबंध सिस्टम पोर्टल पर अपलोड नहीं किया गया है। कोर्ट ने व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल
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कोर्ट ने कहा गांवों को पोर्टल पर अपलोड न करना अदालती कार्यवाही में हस्तक्षेप है। साथ ही वादकारी के मूल अधिकारों का हनन है।
यह आदेश न्यायमूर्ति प्रकाश पाडिया ने बलिया के आदित्य कुमार पाण्डेय की याचिका की सुनवाई करते हुए दिया।
जानिये क्या है पूरा मामला मालूम हो कि सिकंदरपुर गर्वी के गांव डुमराहर दायरा व डुमराहर खुर्द दायरा की पैमाइश कर कंप्यूटरीकृत करने के लिए एसडीएम के समक्ष राजस्व संहिता की धारा 22/24 के तहत अर्जी दी गई। एसडीएम ने राजस्व निरीक्षक/लेखपाल को सर्वे कर रिपोर्ट पेश करने तथा केस दर्ज कर नंबर देने का आदेश दिया।
याची ने निर्धारित शुल्क एक हजार जमा किया। तीन साल से अधिक समय बीत जाने के बाद भी न तो केस पंजीकृत किया गया और न ही केस नंबर दिया गया।
एसडीएम वित्त एवं लेखा ने बताया कि कमिश्नर/सचिव राजस्व परिषद को पोर्टल पर गांव का कोड दर्ज करने के लिए पत्र लिखा गया है। अनुस्मारक भी दिया गया है। किंतु गांव का कोड पोर्टल पर अपलोड न होने के कारण केस पंजीकृत नहीं हो सका है और केस नंबर भी तय नहीं हुआ। इसलिए केस निस्तारित नहीं हो सका है।
तीन माह में होना चाहिए
कोर्ट ने कहा पुराने कानून में केस तय करने की कोई समय सीमा नहीं थी। किंतु राजस्व संहिता में संक्षिप्त विचारण वाले मामलों की अवधि निश्चित है। धारा 24 का केस तय करने की अवधि तीन माह तय है। किंतु जो केस तीन माह में तय होना चाहिए वह तीन साल बीतने के बाद भी पंजीकृत नहीं किया जा सका है।
कोर्ट ने कहा अर्जी दाखिल करते ही कार्यवाही शुरू कर देनी चाहिए और समय के भीतर केस का निस्तारण किया जाना चाहिए।
कोर्ट ने सख्त टिप्पणी की और कहा गांव का कोड पोर्टल पर अपलोड न होना न्यायिक कार्यवाही में हस्तक्षेप करना है और यह वादकारी के अनुच्छेद 14, 21 के मूल अधिकारों व अनुच्छेद 300 ए के तहत संपत्ति के संवैधानिक अधिकारों का उल्लघंन है।
कोर्ट ने कहा गांव पोर्टल पर अपलोड न किए जाने पर आफ लाइन सुनवाई की जा सकती थी। कोर्ट ने मामले को गंभीरता से लिया और कमिश्नर/सचिव उ प्र राजस्व परिषद लखनऊ को व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल कर गांवों को पोर्टल पर अपलोड न करने की सफाई मांगी है।