Janmashtami 2024 Krishna Janmabhoomi Story; Mathura | Vrindavan Gokul | जहां कृष्ण जन्में, बचपन बीता…वहां क्या हैं प्रमाण: यमुना तट पर नंद किला; जिस निधिवन में रासलीला की, वहां रात में कोई नहीं जाता – Uttar Pradesh News

मथुरा और वृंदावन… ये वो शहर हैं, जहां फर्क करना मुश्किल है कि यहां भगवान श्रीकृष्ण बसते हैं या कृष्ण में ही ये शहर बसे हैं। इन शहरों के हर दूसरे दरवाजे पर बैठे पंडित हर साल ग्रह-नक्षत्रों के चाल की गणना करते हैं। फिर निकलता है- कृष्ण जन्माष्टमी का पर
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मथुरा में आज श्रीकृष्ण जन्माष्टमी मनाई जा रही है। मथुरा में कृष्ण के जन्म को लेकर तमाम कथाएं प्रचलित हैं। कहानियां इतनी कि उन्हें गिन पाना नामुमकिन। दैनिक भास्कर भगवान श्रीकृष्ण के जन्म से लेकर उनके बचपन और युवा हाेने तक के गवाह रहे स्थानों पर पहुंचा। जाना कि आखिर हजारों साल बाद भी भगवान श्रीकृष्ण के क्या-क्या साक्ष्य मौजूद हैं? मथुरा से लेकर वृंदावन और गोकुल में श्रीकृष्ण ने किन-किन जगहों पर क्या लीलाएं की? पढ़िए इस रिपोर्ट में-
कृष्ण से जुड़ी वो 5 जगहें, जहां दैनिक भास्कर पहुंचा
1-मथुरा में कृष्ण जन्मस्थान, जहां भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ।
2-मथुरा का विश्राम घाट, जहां से वासुदेव ने कृष्ण को लेकर यमुना में प्रवेश किया था।
3-गोकुल का नंद किला, जहां भगवान कृष्ण का बचपन बीता।
4-वृंदावन का कालियादह घाट, जहां कृष्ण ने कालिया नाग का मर्दन किया।
5-निधिवन, जहां मान्यता है कि कृष्ण आज भी गोपियों संग रासलीला करते हैं।
1- जहां जन्म, वहां श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर
महाभारत से लेकर गीता, भागवत पुराण, विष्णु पुराण और छांदोग्य उपनिषद् में कृष्ण के जन्म का जिक्र है। आज मथुरा में जिस जगह कृष्ण जन्मस्थान है, मान्यता है कि उसी जगह पर कंस की जेल थी। यहीं जेल में भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। इसी के पास से यमुना जी बहती थीं। मौजूदा समय में यमुना यहां से 2.5 किमी दूर चक्रतीर्थ घाट के पास चली गई हैं। अब यहीं पर श्रीकृष्ण का भव्य मंदिर है, जिसे श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर कहा जाता है।

श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर के गर्भगृह में विराजमान लड्डू गोपाल स्वरूप में श्रीकृष्ण।
यहां गर्भगृह में लड्डू गोपाल स्वरूप में श्रीकृष्ण की प्रतिमा है। मुख्य मंदिर में भगवान कृष्ण और देवी राधा की 6 फीट ऊंची प्रतिमाएं हैं। यहां पांच अन्य मंदिर हैं। भगवान बलराम, देवी सुभद्रा और भगवान जगन्नाथ इस मंदिर के दाहिनी ओर विराजमान हैं। भगवान राम, भगवान लक्ष्मण और देवी सीता इस मंदिर के बांयी ओर विराजमान हैं। इसके अलावा भगवान हनुमान, देवी दुर्गा को समर्पित मंदिर और एक शिवलिंग भी देखा जा सकता है। ये सब कृष्ण जन्म भूमि परिसर में स्थित हैं।

विश्राम घाट: कृष्ण के पांव पखारने के लिए यमुना ने 9 लाख साल किया इंतजार
मथुरा में विश्राम घाट को लेकर मान्यता है कि यहीं से वासुदेव ने बाल कृष्ण को डलिया में लेकर यमुना नदी में प्रवेश किया था। यहीं से नदी पार कर वो गोकुल में नंद महाराज के घर पहुंचे थे। विश्राम घाट पर पिछले 20 सालों से कर्मकांड करा रहे पंडित देवेंद्र चतुर्वेदी इस घाट का महत्व बताते हैं- ‘यह घाट सतयुग, द्वापर और त्रेता सहित चारों युगों से प्रमाणित है। सतयुग में कलिंग गिरी पर्वत पर यमुना नदी ने तपस्या किया। वहां साक्षात भगवान विष्णु ने उन्हें दर्शन दिए और पूछा यमुना क्या चाहिए। तब यमुना जी ने कहा- मुझे पति स्वरूप में आप चाहिए। भगवान विष्णु ने कहा कि आप मथुरापुरी गोलोकधाम में पधारो। जब मैं अवतार धारण करूंगा तो प्रथम भेंट आपसे आकर करूंगा।’
वासुदेवजी का यहां से कृष्ण को यमुना पार कराने की कथा पर वो बताते हैं- ‘जब यमुना जी ने वासुदेव को कृष्ण के साथ देखा तो कृष्ण के चरण स्पर्श के लिए जलस्तर बढ़ाने लगीं। यमुना का पानी वासुदेव के नाक तक चढ़ आया और वो कृष्ण को दोनों हाथों में ऊपर लिए चिल्लाने लगे- कोई लो, कोई लो… नहीं तो मेरा बालक डूब जाएगा। आखिरकार विष्णु के अवतार भगवान श्रीकृष्ण का चरण स्पर्श करने के बाद ही यमुना जी ने वासुदेव जी को आगे जाने का मार्ग दिया। जब चरण स्पर्श के लिए यमुना का जलस्तर बढ़ने लगा तब वासुदेव जी ने कहा- चरण पखारे यमुना महारानी, घुटनो-घुटनो हो गया पानी।’

यमुना किनारे स्थिति विश्राम घाट। मान्यता है कि यहीं से वासुदेव श्री कृष्ण को लेकर यमुना पार करने उतरे थे।
देवेंद्र चतुर्वेदी आगे कहते हैं- इस तरह यमुना जी ने यहां आकर 9 लाख वर्ष तक घाट पर तपस्या किया। इसलिए इस घाट का नाम विश्राम घाट पड़ा। वो इस घाट की एक और महिमा बताते हैं। कहते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण ने मामा कंस का वध करने के बाद इस घाट पर आकर विश्राम किया।
नंद किला: गोकुल में नंद भवन के नाम से कई मंदिर, कृष्ण का निवास रहा है नंद किला
गोकुल में प्रवेश करते ही सबसे बड़ी चुनौती आती है असली नंद महल तक पहुंच पाना। गोपाल द्वार से अंदर जाने पर गलियों से होकर जाना पड़ता है। असली नंद महल को लेकर मान्यता है कि यहीं भगवान श्रीकृष्ण का बचपन बीता। यमुना नदी के तट पर बने नंद किला तक पहुंचने पर दो नंद भवन नजर आए। पूछते-पूछते गोकुल की गलियों से होते हुए हम आखिरकार बिल्कुल यमुना नदी के तट से लगे उस नंद किले तक पहुंचे।
इस किले के अंदर अलग-अलग कमरों को कृष्ण की बाल लीला के मुताबिक बांट दिया गया है। भवन अंदर से पूरी तरह मंदिर है। यहां एक मुख्य मंदिर है, जहां नंदबाबा और यशोदा माता के साथ पालने में कृष्ण के बाल स्वरूप को रखा गया है। इसके सामने कमरानुमा जगह है। वहां बैठे पंडित बताते हैं कि इसी कमरे में यशोदाजी सोती थीं। इस कक्ष को श्रुति गृह बोला जाता है।

गोकुल में नंद भवन, जहां श्रीकृष्ण जी का मंदिर है। यहां मइया यशोदा विराजमान हैं।
मंदिर के मुख्य पुजारी मूर्ति शर्मा बताते हैं कि यहां माया जन्मी थीं। नंद बाबा और यशोदा की बेटी। यहीं से वासुदेव जी माया को उठाकर ले गए और कृष्ण को यशोदा जी के पास छोड़ गए। गोकुल की ऐतिहासिकता को लेकर कृष्ण जन्मस्थान के विद्वान गोपेश्वर नाथ चौधरी बताते हैं कि गरुण संहिता, हरिवंश पुराण, श्रीमद् भागवत गीता, स्कंन्द पुराण, वराह पुराण हर जगह उल्लेख है कि मथुरा से भगवान गोकुल गए।
कालियादह घाट: पुराणों में कालिया नाग लीला का वर्णन, घाट मध्य प्रदेश के होल्कर राज घराने ने बनवाया
कालियादह घाट वृंदावन में है। मान्यता है कि यहां श्री कृष्ण ने कालिया नाग का मर्दन किया था। फिलहाल यहां से यमुना का घाट काफी पीछे चला गया है। वृंदावन में कालियादह घाट पर मंदिर सेवा अधिकारी रमाकांत पुरोहित कहते हैं कि इस घटना का जिक्र भागवत पुराण के दसवें स्कंद में कालिया नाग लीला का वर्णन है। पद्म पुराण में भी कृष्ण की इस लीला का जिक्र है। गर्ग संहिता में यह प्रसंग है।

ये वृंदावन में कालियादह घाट है। यहीं श्री कृष्ण ने कालिया नाग मर्दन की लीला की थी।
इसी जगह पर यमुना नदी में रहने वाले कालिया नाग का मर्दन कृष्ण ने किया था। नाग के रहने से यहां का सारा पानी दूषित हो गया था। तब भगवान कृष्ण ने लीला कर उसे यहां से भगाया था। प्राचीन कदंब वृक्ष को दिखाते हुए रमाकांत पुरोहित कहते हैं कि यहीं से कृष्ण ने नदी में छलांग लगा दी थी।
जिधर कृष्ण की कालिया नाग पर सवार मूरली बजाते हुए मूर्ति बनी है, वहां इशारा करते हुए रमाकांत पुरोहित कहते हैं- अब भी तो पानी दूषित ही है। देखिए कैसे पानी काला हुआ पड़ा है। 10-20 साल पहले तक की बात है, यमुना नदी का पानी यहां तक था। अब तो सब सिमट कर पीछे चली गईं। यहां अब कुंड है, जिसमें पानी है।
ये पूछने पर कि इस घाट को बनवाया किसने था? रमाकांत पुरोहित कहते हैं- वृंदावन में यमुना के 32 घाट हैं। करीब 9-10वीं सदी में अलग-अलग राजघरानों ने यहां के घाट बनवाए। ये सभी घाट अलग-अलग राजाओं ने बनवाए। इस कालियादह घाट को मध्य प्रदेश के होल्कर स्टेट ने बनवाया था।
निधिवन: वो जगह जहां श्रीकृष्ण ने खुद को प्रेम के देव के रूप में स्थापित किया
वृंदावन में ही कालियादह घाट से करीब 4 किमी की दूरी पर निधिवन है। वो जगह, जिसके बारे में मान्यता है कि यहां कृष्ण वृंदावन में अपने निवास के दौरान हर रात राधा और गोपियों संग रासलीला रचाते थे। इस वन तुलसी के जंगल को लेकर मान्यता है कि आज भी हर रात यहां कृष्ण रासलीला रचाते हैं। तुलसी की पेड़ों की लताएं गोपियां बन जाती हैं। इसलिए शाम होते ही निधिवन के द्वार बंद कर दिए जाते हैं। कहा जाता है कि अगर कोई इंसान यह देख ले तो वह अंधा हो जाता है। मानसिक संतुलन तक खो बैठता है।

यह निधिवन है। यहीं श्रीकृष्ण ने राधा और गोपियों के संग रासलीला रचाई थी।
इस मान्यता को लेकर निधिवन के मुख्य अधिकारी विक्की गोस्वामी कहते हैं- यह सच है कि आज भी ऐसा होता है। शाम होते ही पशु-पक्षी भी इस जगह को छोड़कर चले जाते हैं। दिन में बड़ी संख्या में बंदर दिखते हैं, लेकिन शाम होते ही यह सब चले जाते हैं। वह इस जगह के बारे में बताते हुए कहते हैं- ‘निधि मतलब खजाना यानी यह जगह एक दिव्य खजाना जैसी है। यहीं पर स्वामी हरिदास जी ने भजनों से बांके बिहारी जी को बुलाया था। आज भी भगवान हर रात यहां रास करने के लिए आते हैं।’
विक्की गोस्वामी उस घटना का भी जिक्र करते हैं, जब अकबर ने तानसेन के मुंह से स्वामी हरिदास की प्रशंसा सुनी तो वह एक दिन साधारण व्यक्ति का भेष धारण कर यहां स्वामी जी का भजन सुनने आ गए। दरअसल, स्वामी हरिदास सिर्फ बिहारी जी को ही संगीत सुनाते थे।

16वीं सदी में स्वामी हरिदास के भजन की चर्चा दूर-दूर तक फैली थी। खास बात ये थी कि वो भजन सिर्फ बिहारीजी के लिए गाते थे।
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कृष्ण जन्माष्टमी पर वृंदावन में बने मंदिर, सिंहासन और झूले की डिमांड हाई है। जन्माष्टमी पर अब तक 100 करोड़ के मंदिर बिक चुके हैं। अमेरिका, कनाडा, जर्मनी, सिंगापुर में भारतीय मूल के लोग लड्डू गोपाल को वृंदावन में बने मंदिरों में ही विराजमान करना चाहते हैं। कारीगरों के मुताबिक, इसके पीछे की वजह सिर्फ कान्हा से जुड़ी आस्था है। पूरी खबर पढ़ें…